my journey starts today

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THE MORE I DISCOVER , THE MORE I DISCOVER , HOW LESS I KNOW

Tuesday, August 22, 2017

भाषा एक तरल पदार्थ है।


यह समय के साथ ढाल उतारती जाती है।
संस्कृत पिघली पाली प्राकृत गढ़ी गयीं। फारसी से हिंदवी , उर्दू


दूसरी के साथ मिल कर प्रकृति बदलना आम बात है। जो पकड़ कर बैठे 

हैं , उन्हें समझना होगा कि तरल ही उसके जीवित रहने की ग्यारण्टी है। 

जिन भाषाओं ने कड़ा ठोस मैटेलिक रुप धारण किया वो मृतप्रायः पड़ी 

हैं , दुसरीओं से जीवनरक्त मांग रही हैं। 

हमारा बच्चा ही सबसे अच्छा है , ये तो स्वाभिमान हो सकता है पर वह दूसरे बच्चों से मिलेगा तो बिगड़ ही जाएगा इस भरोसे की भैंस पाड़ा ही जनती है । इतिहास इसका गवाह है।