यह समय के साथ
ढाल उतारती जाती है।
संस्कृत पिघली
पाली प्राकृत गढ़ी गयीं। फारसी से हिंदवी , उर्दू
दूसरी के साथ
मिल कर प्रकृति बदलना आम बात है। जो पकड़ कर बैठे
हैं , उन्हें समझना होगा कि तरल
ही उसके जीवित रहने की ग्यारण्टी है।
जिन भाषाओं ने कड़ा ठोस मैटेलिक रुप धारण
किया वो मृतप्रायः पड़ी
हैं , दुसरीओं से जीवनरक्त मांग रही हैं।
हमारा बच्चा ही सबसे अच्छा है , ये तो स्वाभिमान हो सकता है पर वह दूसरे बच्चों से मिलेगा तो बिगड़ ही जाएगा इस भरोसे की भैंस पाड़ा ही जनती है । इतिहास इसका गवाह है।
हमारा बच्चा ही सबसे अच्छा है , ये तो स्वाभिमान हो सकता है पर वह दूसरे बच्चों से मिलेगा तो बिगड़ ही जाएगा इस भरोसे की भैंस पाड़ा ही जनती है । इतिहास इसका गवाह है।